Two Line Shayari
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चेहरे पर सुकून तो बस दिखाने भर का है,
वरना बेचैन तो हर शख्स ज़माने भर का है।
सितम तो ये है कि ज़ालिम सुखन-सनास नहीं,
वो एक शख्स जो शायर बना गया मुझको।
मुद्दतों बैठे रहे हम तेरे एहसास के साथ
दूर के दूर रहे और पास के पास
फूल बनने की खुशी में मुस्कुरायी थी कली,
क्या खबर थी ये तबस्सुम मौत का पैगाम है।
मैं एक शाम जो रोशन दीया उठा लाया,
तमाम शहर कहीं से हवा उठा लाया।
मुहब्बत बुरी है बुरी है मुहब्बत,
कहे जा रहे हैं, किये जा रहे हैं
सुलगते लम्स की खुशबू हवा में छोड़ गया,
वो जो हमसफर था, सफर में छोड़ गया
वक्त भी…कैसी पहेली दे गया
उलझने सौ… जां अकेली दे गया
नज़र, नमाज़, नज़रिया सब कुछ बदल गया
इक रोज़ मुझे इश्क़ हुआ और मेरा खुदा बदल गया
वो इस अंदाज़ में मुझसे मोहब्बत चाहती है,
मेरे ख्वाब में भी अपनी हुकूमत चाहती है
राह तकते जब थक गई आंखे
फिर तुझे ढूंढने मेरी आंख के आसूं निकले.
इक शख़्स.. कुछ लम्हे.. कई यादें बतौर इनाम मिले
इक सफर पर निकले और तजुर्बे तमाम मिले
छूटे हुए हाथों का छूटना अब और नही अखरता
पड़ चुका है अब फ़र्क इतना कि अब फ़र्क नही पड़ता
दिल ना उम्मीद तो नही….नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम मगर शाम ही तो है
नजरों में दोस्तों की जो इतना खराब है,
उसका कसूर ये है कि वो कामयाब है।
सोचा नही था जिंदगी में ऐसे भी फसाने होंगे,
रोना भी जरूरी होगा और आसूं भी छुपाने होंगे।
हजारों ख्वाहिश ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूं नही
मुझ को तन्हा देखकर उसने पुकारा क्यों नही
दिल की तकलीफ़ कम नही करते,
अब कोई शिकवा हम नही करते
अगर, मगर, और काश में हूं
फिलहाल मैं अपनी ही तलाश में हूं
तलब करें तो मैं अपनी आँखें भी उन्हें दे दूँ,
मगर ये लोग मेरी आँखों के ख्वाब माँगते हैं।
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यों नही जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता।
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।।
दुआ करो की मै उसके लिए दुआ हो जाऊं,
वो एक शख्स जो दिल को दुआ सा लगता है।।
ज़मीन पर मेरा नाम वो लिखते और मिटाते हैं,
वक्त उनका तो गुज़र जाता है, मिट्टी में हम मिल जाते हैं
शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है?
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।
भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आया हूँ,
कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते।
बंदगी की और मोहब्बत को खुदा लिखा,
बस यही वजह थी कि वो शख्स मुझसे जुदा मिला।।
धीरे धीरे ढलते सूरज का सफ़र मेरा भी है
शाम बतलाती है मुझ को एक घर मेरा भी है।।